सैनिकों की पत्नियों को समर्पित:- मुदिता तिवारी

आप में से कई लोग होंगे जिनके परिवार में से कोई भारतीय सेना में शामिल हो कर मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा होगा। तमाम व्रत त्यौहार उनकी गैरमौजूदगी में मनाने पड़ते होंगे। जब वे अपने हाथ हथियार उठाने के बढ़ाते होंगें तब आप उनकी सकुशल वापसी के लिए दुआ करते होंगे। पिता अपने कंधों का बल पुत्र को शास्त्रों का भार उठाने को दे देता है। बहन भाई की कलाई पर राखी बांध कर भारतवासियों की रक्षा करने का वचन लेती है। पत्नी अपना सम्पूर्ण श्रृंगार भारत मां के लिए समर्पित कर देती है। एक मां अपने पुत्र को अपने आंचल से मां भारती के आंचल में अर्पित कर देती है। काव्य शास्त्र का अधिक ज्ञान नहीं है इसलिए ये तो नहीं कहूंगी कि कविता लिखी है परन्तु कुछ लिखने का प्रयास किया है। एक छोटी सी रचना सैनिकों की पत्नियों को समर्पित। भूमिका इतनी सी की एक दंपती कुछ माह पूर्व ही परिणय सुत्र में बंधे होते है। परिस्थितियां पति को सरहद पर आने का निमंत्रण भेज देती हैं। ऐसे में पत्नी के हृदय में उत्पन हुए भावनाओ के सैलाब को शब्द देने का प्रयास किया है। यदि आपको लगे श्रृंगार के साथ-साथ वीर रस लिख दिया है तो सब की शुभकमनाएं और कलम को तीक्ष्ण करने का आशीष चाहूंगी। *********** विदा करा कर लाए हो कल, आज विदाई मांंग रहे हो, वादों की परिधि प्रिय,तुम क्यों आज अचानक लांघ रहे हो।
आलिंगन से तुम ने मेरे ,जीवन के सारे दुख चुन डाले थे। बाधा पार करेंगे मिलकर, मैंने सारे सपने बुन डाले थे ।

सरहद पार जाओगे जब, तब प्रेम को प्यासी आहें होंगी। दूर द्वारा से देख जाता तुमको , हरारात भारी निगाहें होंगी।
मांग सजाऊंगी जब तब दिल की धड़कन बढ़ जाएगी। ” तुम ना आए तो…”सोच कर चूड़ी पायल भी घबराएगी ।
कसमें दे कर थाम लू तुमको, इतना है अधिकार मुझे। पर मैं मां के वंदन से रोकुं,ये पाप नही स्वीकार मुझे।
जाओ कर्मवीर बन सीमा पर, बेटे का फ़र्ज़ निभाओ तुम। कर्जदार बनकर ना जीना , मां का क़र्ज़ चुकाओ तुम।

पड़े जरूरत मातृभूमि को, तब प्राण स्वयं के दे आना। वापस जब आना ,मुट्ठी में माटी मांग सजाने को लाना।

– मुदिता तिवारी

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